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क्या कहता है विज्ञान: प्लूटो क्यों नहीं माना जाता है ग्रह?

Written by कार्यालय,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज,जयपुर। समाचार डेस्क प्रभारी—2-पी.सी.योगी on . Posted in युवा प्रेरणा,कैरियर व रोजगार समाचार

बैस्ट रिपोर्टर न्यूज,जयपुर।आज के कई युवा जब स्कूल में थे तब उन्हें प्लूटो (Pluto) को ग्रह (Planet) बताया जाता था. लेकिन 2006 के बाद से इस पिंड को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया गया और उसे बौना ग्रह (Dwarf Planet) करार दे दिया गया. उसके बाद से तो यह विवाद का विषय ही हो गया. कई खगोलविदों का यह कहना है कि प्लूटो ग्रह ही होना चाहिए. जबकि कई सवाल करते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ता है. अंतरिक्ष विज्ञान में सामान्य रुचि रखने वालों के लिए भी यह अजीब है कि आखिर प्लूटो को ग्रह क्यों नहीं माना जाता है. आइए जानते हैं कि इस पर क्या कहता है विज्ञान.

कहां हैं प्लूटो

हमारे सौरमंडल में मंगल ग्रह के बाद क्षुद्रग्रह की पट्टी है जिसके बाद गुरु ग्रह, यूरेनस और फिर नेप्च्यून ग्रह की कक्षा पड़ती है. नेप्च्यून की कक्षा के आगे दूर एक और पट्टी आती है जिसमें बर्फीले क्षुद्रग्रहों की भरमार है जो सूर्य का चक्कर लगा रहे हैं. इस पट्टी को काइपर पट्टी (Kuiper Belt) इन्हें में से एक पिंड प्लूटो है.

निर्विवाद रूप से ग्रह था प्लूटो

प्लूटो की खोज साल 1930 में हुई थी. इसकी खोज के बाद के 76 सालों तक यानि 2006 तक इसे एक ग्रह ही माना जाता रहा. दिलचस्प बात यह है कि इसकी खोज के 62 साल तक काइपर पट्टी का कोई दूसरा पिंड ही नहीं खोजा जा सका था. ऐसे में प्लूटो निर्विवाद रूप से सौरमंडल का नौवां ग्रह ही माना जाता है जिस पर आपत्ति उठाने का सवाल ही पैदा नहीं हुआ.

छोटा होता गया आकार

लेकिन जैसे जैसे टेलीस्कोप बड़े होते गए , हमारे खगोलविदो को सुदूर अंतरिक्ष के पिंडों की तस्वीर साफ दिखाई देने लगी इसमें प्लूटो भी शामिल था. धीरे धीरे खगोलविदों को यह भी पता चला कि प्लूटो दूसरे ग्रहों की तुलना में काफी छोटा है बेहतर उपकरण इसके आकार को और छोटा करते गए. 1992 में दूसरा काइपर बेल्ट पिंड खोज निकाला गया. तब तक यह पता चल चुका था कि प्लूटो तो वास्तव में हमारे चंद्रमा से भी छोटा है.

कुछ दिक्कतें

प्लूटो के बारे में एक बात और खटकती रही, वह यह कि उसकी कक्षा नेप्चूयन की कक्षा को काटती है. ऐसे सौरमंडल के किसी और ग्रह के साथ नहीं है. पिछली सदी के अंतिम दशक और उसके बाद काइपर पट्टी के और भी पिंड खोजे जाने लगे जिनकी संख्या जल्दी ही सैकड़ों तक पहुंच गई. लेकिन दिक्कत तब हुई जब साल 2005 में काइपर पट्टी में ईरिस नाम के पिंड की खोज हुई जो प्लूटो से भी बड़ा था.

तो कौन सा ग्रह

अब वैज्ञानिकों के सामने एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया. क्या प्लूटो और ईरिस दोनों को ही ग्रह घोषित कर दिया जाए. ऐसे में उन सभी पिंडों का क्यो होगा जो प्लूटो से आकार में कुछ ही कम हैं. क्या इन्हें भी ग्रह कहा जाना चाहिए. ऐसे में कितने ग्रहों की नाम याद रख पाएंगे. इसी लिए 2006 में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के खगोलविदों को इसके लिए एक मीटिंग रखनी पड़ी.

फैसले के लिए हुई मीटिंग

इस मीटिंग में फैसला वोटिंग के जरिए करना तय किया गया. बहुत से लोगों ने प्लूटों से भावनात्मक लगाव रखते हुए उसेग्रह बनाए रखने के पक्ष में वोट दिया, लेकिन अधिकांश खगोलविद प्लूटो को ग्रह की श्रेणी में रखने के पक्ष में नहीं थे. लेकिन काफी खगोलविदों को लगता था कि प्लूटो को एक ग्रह कहना ही गलती थी और इसे अब काइपर बेल्ट का एक पिंड शुरू से ही कहा जाना चाहिए था.

बौने ग्रह की श्रेणी

इसके बाद प्लूटो एक ग्रह नहीं बल्कि ड्वार्फ ग्रह यानि बौने ग्रह की श्रेणी में रखा गया जो वो पिंड होते हैं जिनके गुरुत्व के कारण उनकी आकृति गोलाकार होती है. इस तरह के कई बौने ग्रह काइपर पट्टी में खोजे जा चुके हैं और ज्यादा संख्या में मिलने की संभावना भी है.इतना ही नहीं एक बौना ग्रह जिसका नाम सेरेस है, तो क्षुद्रग्रह पट्टी में ही मौजूद है.

बेशक 76 साल तक ग्रह कहे जाने वाला प्लूटो ग्रह अब भी कई किताबों में ग्रह माना जाता है. लेकिन यह बहुत से खगोलविदों के लिए अब भी ग्रह की ही तरह है और वे उसका ग्रह की ही तरह अध्ययन भी कर रहे हैं. वहीं कई खगोलविद प्लूटो को फिर से ग्रह की श्रेणी में लाने के लिए प्रयासरत हैं.2015 में नासा का न्यू होराइजन्स अंतरिक्ष यान ने प्लूटो के बारे में बहुत सारी जानकारी भेजी हैं इनसे पता चलता है कि प्लूटो पहाड़ों, ग्लेशियरों, क्रेटर के साथ ही एक पतले वायुमंडल का ग्रह है.