प्रोजेक्ट मंजिल से जुडी 450 लाभान्वित बेटियां हुई शामिल
बैस्ट रिपोर्टर न्यूज,जयपुर (आशा पटेल)। आज दुर्गापुरा स्थित सियाम सभागार में आईपीई ग्लोबल के प्रोजेक्ट मंजिल द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर जयपुर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मंज़िल की लड़कियों की सफलताओं को दर्शाने वाली एक काफ़ी टेबले का लोकार्पण भी किया गया. मंजिल से लाभान्वित लगभग 450 लड़कियां इस कार्यक्रम में शामिल हुई। साथ ही प्रशिक्षण प्रदाता, प्रधानाचार्य और कार्यक्रम से जुड़े नियोक्ता भी शामिल हुए। छह जिलों - उदयपुर, जयपुर, टोंक, भीलवाड़ा, अजमेर, डूंगरपुर में कार्यान्वित यह परियोजना राजस्थान के 1000 गाँव तक पहुंच गई है, जिसमें 34,000 से अधिक 17-21 साल की लड़कियां शामिल हैं। 3700 से अधिक लड़कियों को इस परियोजना के तहत अब तक नौकरी मिली है।
मंजिल ने यह सुनिश्चित किया कि इन जिलों में कई लड़कियों के जीवन को नई दिशा मिले। मंज़िल की बदौलत डूंगरपुर की एक दिव्यांग मोनिका गरासिया अब एक सिलाई केंद्र में मास्टर ट्रेनर के रूप में काम कर रही है और अपने पिता की मौत के बाद अपनी मां के तपेदिक उपचार में सहयोग कर रही है। अजमेर जिले के चाचावास गांव की दीपा शारदा अब जयपुर में काम करती हैं, और अपनी मानसिक रूप से बीमार मां की मदद के लिए हर महीने पैसे घर भेजती हैं।
इस अवसर पर आरएसएलडीसी की सीएमडी रेणु जयपाल ने कहा कि "युवा महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर नहीं मिलते। इसी कारण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी काफी कम है। कम उम्र में शादी और तुरंत माँ बन जाने की वजह से कई बालिकाएं अस्वस्थता , गरीबी और वित्तीय परतंत्रता के कुचक्र में बंध जाती हैं। आर्थिक स्वतंत्रता महिलाओं को स्वावलम्बी बनाती है तथा उनकी निर्णायक क्षमता को प्रबलता प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि 'प्रोजेक्ट मंजिल' के तहत राजस्थान के वंचित समुदाय की लड़कियों का कौशल उन्नयन किया जा रहा है। डूंगरपुर जैसे आदिवासी क्षेत्र में दूरदराज के गांव की कई किशोरियां कौशल प्रशिक्षण से लाभान्वित हुई हैं। वे अब देश की प्रतिष्ठित कंपनियों में कार्यरत हैं और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हैं।"
आईपीई ग्लोबल के सीओओ, एम. पद्म कुमार ने कहा, "यह कार्यक्रम मंजिल की सफलता का जश्न मनाने के बारे में है। वह हमारे लिए गर्व और सम्मान का क्षण है।" उन्होंने कहा, “मैं मंजिल की टीम के सदस्यों के प्रयासों की सराहना करता हूं, जो राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में जाकर लड़कियों और उनके सपनों को समर्थन देने और उन्हें आवाज देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने अकल्पनीय कार्य किया है। इससे भी अधिक सराहना उन लड़कियों की होनी चाहिए, जिन्होंने अपने परिवार से लड़ाई की और उन्हें मनाया। अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलीं और अपने पैरों पर खड़े होने के लिए पहला कदम उठाया।”